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आठवें वेतन आयोग की मंजूरी: आउटसोर्सिंग और संविदा कर्मियों के मुद्दों पर कब होगा ध्यान

 *आठवें वेतन आयोग की मंजूरी: आउटसोर्सिंग और संविदा कर्मियों के मुद्दों पर कब होगा ध्यान?*


केंद्र सरकार ने आठवें वेतन आयोग के गठन को मंजूरी दे दी है और उम्मीद है कि 2027 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों से पहले इसे लागू कर दिया जाएगा। इससे सरकारी कर्मचारियों को निश्चित रूप से लाभ होगा, लेकिन सवाल यह है कि आउटसोर्सिंग और संविदा के नाम पर बेहद कम वेतन पर काम करने वाले कर्मचारियों की दुर्दशा कब समाप्त होगी?


*संविदा और आउटसोर्सिंग का दंश*


उत्तर प्रदेश में बड़ी संख्या में शिक्षामित्र, अनुदेशक, और अन्य संविदा कर्मी 8,000 से 18,000 रुपये के बीच के वेतन पर काम कर रहे हैं। ये लोग सरकारी योजनाओं को लागू करने में अहम भूमिका निभाते हैं, लेकिन उनका वेतन और नौकरी की सुरक्षा सरकारी कर्मचारियों की तुलना में बेहद कमजोर है। यह स्थिति उन्हें आर्थिक तंगी और अस्थिरता में धकेल रही है।


*शिक्षामित्र और अनुदेशकों की पीड़ा*


शिक्षामित्र और अनुदेशक, जो ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा का स्तर सुधारने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं, वेतन की समस्या से जूझ रहे हैं।


*#शिक्षामित्र:* जिन पर प्राथमिक शिक्षा की जिम्मेदारी है, उन्हें *10000 मामूली मानदेय* मिलता है, जो उनकी जरूरतें पूरी करने में असमर्थ है वही,


*#अनुदेशक:* विभिन्न विषयों के लिए विशेष प्रशिक्षण लेकर आए ये अनुदेशक मात्र 9000 सीमित वेतन और संविदा आधारित नौकरी की असुरक्षा का सामना कर रहे हैं।



*प्रधानमंत्री और राज्य सरकार से अपील*


जब सरकारी कर्मचारियों के लिए वेतन आयोग का गठन किया जा सकता है, तो संविदा और आउटसोर्सिंग कर्मियों के लिए भी न्यूनतम वेतन मानक तय करना आवश्यक है।


⭕वेतन वृद्धि: न्यूनतम वेतन 20,000 रुपये तक बढ़ाया जाए।


⭕स्थायी रोजगार: संविदा कर्मियों को नियमित किया जाए।


⭕समान कार्य, समान वेतन: आउटसोर्सिंग और संविदा कर्मियों को भी उनके काम के अनुरूप वेतन और सुविधाएं दी जाएं।



*सरकार को करनी होगी पहल*


आठवें वेतन आयोग से सरकार की मंशा स्पष्ट होती है कि वह सरकारी कर्मचारियों के हित में कदम उठा रही है। लेकिन यह भी जरूरी है कि संविदा और आउटसोर्सिंग कर्मचारियों के लिए एक समानांतर नीति बनाई जाए, ताकि उनका "खून चूसने" जैसा शोषण समाप्त हो सके।


क्या प्रधानमंत्री और राज्य सरकार इस दिशा में कोई ठोस कदम उठाएंगे? संविदा और आउटसोर्सिंग कर्मियों को भी न्याय मिल सकेगा? ये सवाल 2027 के चुनावों में अहम मुद्दा बन सकते हैं।