हथगाम थाने ग्राम सभा आम्बी मजरे दुबे का पुरवा की कराह: सरकारी संरक्षण में फलती-फूलती जालसाजी का काला सच

India100news

 हथगाम थाने ग्राम सभा आम्बी मजरे दुबे का पुरवा की कराह: सरकारी संरक्षण में फलती-फूलती जालसाजी का काला सच!

भू-माफिया का नंगा नाच: राजस्व की काली किताब, न्याय की सिसकती आवाज!



कागजों पर चलता 'मौत' का खेल: हथगाम का 'काला' अध्याय, जहां हर कदम पर षड्यंत्र!

सत्ता की सरपरस्ती, भूखे भेड़ियों का राज: हथगाम की माटी पर लहुलुहान न्याय!

वसीयत नहीं, ये 'धोखे' का फंदा है: अधिकारियों की मिलीभगत, जमीनें बर्बाद!

ग्राम समाज की कब्र खोदते माफिया: क्या सो रहा है प्रशासन या सांठगांठ में लीन है?

फर्जीवाड़े का फौलादी जाल: जहां सत्य प्रकाश नहीं, अंधकार का साम्राज्य है!

न्याय के मंदिर में 'अन्याय' की आरती: खागा तहसील में भू-माफिया का बोलबाला!

खूनी खेल 'जमीन' का: जब अपने ही अपनों को नोचते हैं, सत्ता मूकदर्शक बनी रहती है!

हरकत में क्यों नहीं 'हुकूमत'? क्या सिर्फ कागजी शेर है भू-माफिया विरोधी अभियान?

चौराहे पर 'चरित्रहीन' कानून: हथगाम की कहानी, जहां न्याय सिर्फ 'किताबों' में है!

भू-माफिया और षड्यंत्र की जालसाजी: हथगाम थाना क्षेत्र का काला सच


हथगाम थाना क्षेत्र के ग्राम सभा आम्बी मजरे दुबे का पुरवा में एक ऐसा भू-माफिया सक्रिय है, जिसकी काली करतूतों का कोई मुकाबला नहीं कर सकता। चार भाइयों में दो की शादी हुई और दो की नहीं, लेकिन बड़े भाई श्याम सुंदर के नाम से दो पुत्र सत्य प्रकाश और प्रेम प्रकाश को वसीयत दिखाकर पूरे परिवार की जमीन अपने कब्जे में लेने की साजिश रची जा रही है। पिता सदाशिव के निधन के बाद जो जमीन उनके नाम आई थी, वह सब भाइयों ने बेच दी या बैनामा कर लिए, जबकि श्याम सुंदर ने अपनी जमीन का बैनामा कर लिया है, जिसकी कोर्ट में दाखिल खारिज भी हो चुकी है। फिर भी सत्य प्रकाश और प्रेम प्रकाश वसीयत को आधार बनाकर पूरी जमीन अपने नाम करने की ठानी है, जो पूरी तरह फर्जी और धोखाधड़ी पर आधारित है।


यह मामला तहसीलदार धाता, तहसील खागा, जिला फतेहपुर की अदालत में लंबित है, जहां न्यायालय ने बैनामा को मान्यता दी है, परन्तु भू-माफिया और उनके साथियों की मिलीभगत से यह मामला सुलझने का नाम नहीं ले रहा। वसीयत बनाने वालों और अधिकारियों की सांठगांठ ने इस घोर अपराध को संरक्षण दिया है। अपने ही परिवार के सदस्यों के नाम के साथ छेड़छाड़ कर बाबा और दादा के नामों को उर्फ लगाकर जमीनों का अवैध कब्जा कराया गया है। इस भू-माफिया गिरोह ने ग्राम समाज की नवीन प्रति, इमारती लकड़ी, जंगल, चारागाह तक पर कब्जा कर रखा है, जो क्षेत्र में सर्वव्यापी आतंक का पर्याय बन चुका है।


तीन चाचा मृत हो चुके हैं, श्याम सुंदर अभी जीवित हैं, परन्तु अपनी जमीन का बैनामा कर चुके हैं। जिन लोगों को जमीन मिली, उनका दाखिल खारिज हो चुका है, बावजूद इसके कोर्ट ने बैनामा को वैध ठहराया। भू-माफिया ने आपत्तियों को दरकिनार कर खुद को असली हकदार साबित किया है। यह मामला न केवल एक परिवार का विवाद नहीं, बल्कि राजस्व विभाग, पुलिस प्रशासन और वसीयतनामा बनाने वालों की मिलीभगत से एक बड़ा षड्यंत्र बन गया है। अगर इस मामले की जांच सही ढंग से की जाए तो इसमें शामिल अधिकारी, कर्मचारी और भू-माफिया सब 420 के तहत फंसेंगे।


यह भू-माफिया गिरोह क्षेत्र में इस कदर प्रभावशाली है कि ग्राम समाज के संसाधनों पर कब्जा कर क्षेत्र की सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था को तहस-नहस कर रहा है। राजस्व विभाग की लापरवाही और पुलिस प्रशासन की बेरुखी के कारण यह षड्यंत्र फल-फूल रहा है। इस स्थिति में किसी भी समय बड़ी दुर्घटना या सामाजिक विस्फोट हो सकता है, जिसके जिम्मेदार केवल वही अधिकारी होंगे जिन्होंने इस जालसाजी को संरक्षण दिया।


निष्कर्ष

यह मामला भू-माफियाओं के खिलाफ सख्त कार्रवाई की आवश्यकता को दर्शाता है, जैसा कि प्रदेश सरकार और जिलाधिकारी द्वारा निर्देशित किया गया है। लेकिन जब जांच और कार्रवाई में ही भ्रष्टाचार और सांठगांठ हो, तो न्याय व्यवस्था और प्रशासन की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिह्न लग  समाज में अराजकता और अपराध की जड़ें और गहरी होती जाएंगी।

Tags